विद्यालयों का वातावरण बोझिल न हो बच्चों के लिए अरुचिकर न हो जाये इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए | यदि सप्ताह के सभी दिन सभी कालांशों में बच्चे पढाई में ही लगें रहेंगें तो बच्चे विद्यालय में आने से मन चुराने लगेंगें | इसलिए एक दिन तो ऐसा होना चाहिए जो बच्चों के लिए मज़ेदार हो | जिस दिन वो पढाई के बोझ से मुक्त रहें और वो आनन्द के साथ अपना समय बितायें | इसके साथ ही बच्चे खेल-खेल में मजे के साथ कुछ अच्छी बातें भी सीख सकें | इसीलिये विद्यालयों में शनिवार के दिन बाल-सभा का आयोजन किया जाता है | इस सभा के आयोजन के लिए उच्च प्राथमिक विद्यालयों में मीना मंच का गठन किया जाता है और प्राथमिक विद्यालयों में 'बाल-संसद' का गठन किया जाता है | बाल-सभा में बच्चों को रोचक गतिविधियाँ करायी जाती है साथ ही उन्हें 'अच्छा-स्पर्श, बुरा स्पर्श' आदि के विषय में सचेत किया जाता है | बाल-अधिकार जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाती है | इसके अतिरिक्त विभिन्न समिति बनाकर बच्चों में समूह में कार्य करने की आदत डालने का प्रयास किया जाता है ताकि उनमे आपसी सहयोग की भावना का विकास हो सके | मीना मंच और बाल-संसद के सन्दर्भ में एक शासनादेश पत्रांक-GE-84/ मीना मंच/बांल संसद / 2195/2023-24, दिनांक 23-05-2023 को जारी किया गया था जिसे आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं |
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बाल सभा में बच्चे मीना के बारे में भी जानते और समझते हैं | मीना एक नौ वर्ष की काल्पनिक बच्ची है | वह रोज स्कूल जाती है और सबकी मदद करती है | मीना का में उमग, उल्लास, सहानुभूति और सहायता का भाव है। वह अपने माता-पिता, दादी, भाई राजू और बहिन रानी के साथ रहती है। मिठू तोता उसका सबसे प्यारा दोस्त है। मीना बहुत प्यारा-सा, सबको लुभाने वाला पात्र है। वह जहाँ जाती है, लोग उसका दिल खोलकर स्वागत करते हैं।
मीना आपके स्कूल में आकर आपके और आपके विद्यार्थियों के साथ रहने को आतुर है।
