गीत गा रहे हैं आज हम रागिनी को ढूँढ़ते हुए
आ गये यहाँ कदम ज़िन्दगी को ढूँढ़ते हुए
है बुरा दहेज का रिवाज़ आज देश में समाज में
है तबाह आज आदमी लूट पर टिके समाज में
हम समाज भी बनाएँगे जिन्दगी को ढूँढ़ते हुए
गीत गा रहे .....
फिर न रो सके कोई दुल्हन ज़ोर-जुल्म का न हो निशां
मुस्कुरा उठे धरा गगन हम रचेंगे ऐसी दास्तां
हम वतन को यूं सजाएँगे, रोशनी को ढूँढ़ते हुए
गीत गा रहे.....
इन दिलों में यह उमंग है, इक जहां नया बसाएँगे
जिन्दगी का दौर आज से, दोस्तों को हम सिखाएँगे
फूल हम नया खिलाएँगे, ताज़गी को ढूँढ़ते हुए
गीत गा रहे....
-अज्ञात