ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गाँव के
अब अँधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गाँव के
पूछती है झोंपड़ी और पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के
बिन लड़े कुछ भी यहाँ मिलता नहीं यह जान कर
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गाँव के
लाल सूरज अब उगेगा देश के हर गाँव में
अब इकट्ठे हो चले हैं लोग मेरे गाँव के
चीखती है हर रुकावट ठोकरों की मार से
बेड़ियाँ खनका रहे हैं लोग मेरे गाँव के
देखो यारों जो सुबह लगती थी फीकी आज तक
रंग नया उसमें भरेंगे लोग मेरे गाँव के
ले मशालें...
-अज्ञात